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{{KKRachna
|रचनाकार=अनु जसरोटिया
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|संग्रह=ख़ुशनुमा / अनु जसरोटिया
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<poem>
अब मेरे भाई कि चिट्ठी नहीं आया करती
ऐसे रिश्तों में तो तल्ख़ी नहीं आया करती

फूल बनना है तो फिर बूए-वफ़ा पैदा कर
काग़ज़ी फूल पे तितली नहीं आया करती

एक दिन पूछूंगी नदिया से कि क्यों साथ तेरे
अब मेरे गांव की मिट्टी नहीं आया करती

आजकल याद नहीं करते हो हम को शायद
भूल कर भी हमें हिचकी नहीं आया करती

जब वो परदेश को जाता है तो उस के पीछे
नींद आती तो है, गहरी नहीं आया करती

कुछ तो आसार हुआ करते हैं तूफ़ानों के
बिन इशारे के तो आंधी नहीं आया करती

कुछ तो है बात जिसे दिल में छूपा रखा है
यूं लबों पर तो ख़मोशी नहीं आया करती

लोग जो बद भी हैं, बदनाम भी इस दुनिया में
उनके घर देखा है डोली नहीं आया करती
</poem>
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