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{{KKRachna
|रचनाकार=अनु जसरोटिया
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|संग्रह=ख़ुशनुमा / अनु जसरोटिया
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<poem>
दिल के मन्दिर में दीपक जलाया नहीं
क्यों अन्धेरों को तुम ने मिटाया नहीं

जिस से आकाश, पाताल, धरती हिले
गीत ऐसा अभी गुनगुनाया नहीं

एक जोड़ा खुले आसमां में उड़ा
लौट कर इस तरफ़ फिर वो आया नहीं

उस के आंचल की तो बात है दूर की
सर पे आवारा बादल का साया नहीं

ग़ौर से बात सुनता रहा वो मेरी
फैे़सला उसने अपना सुनाया नहीं

दिल नहीं, दिल की तौहिन कहिए उसे
नूर तेरा कि जिस में समाया नहीं
</poem>
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