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{{KKRachna
|रचनाकार=अनु जसरोटिया
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|संग्रह=ख़ुशनुमा / अनु जसरोटिया
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<poem>
धूप में मेरे साथ चलता था
वो तो मेरा ही अपना साया था

वो ज़माना भी कितना अच्छा था
मिलना जुलना था आना जाना था

यक-बयक मां की आंख भर आई
हाल बेटे ने उसका पूछा था

गुम था सारा जहां अन्धेरे में
झोपड़ी में चिराग़ जलता था

दिल मचलता है चांद की ख़ातिर
ऐसा नादां भी इस को होना था

हाले दिल पर हमारे रातों को
चांद तारों को मुस्कुराना था

उस को आना था ऐसे वक़्त कि जब
कोई ग़फ़लत की नींद सोता था

उसकी मुठट्टी में क़ायनात भी थी
जिसके हाथों में एक कासा था

दिल है बैचैन उसके जाने पर
बेवफ़ाई ही जिसका पेशा था
</poem>
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