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{{KKRachna
|रचनाकार=अनु जसरोटिया
|अनुवादक=
|संग्रह=ख़ुशनुमा / अनु जसरोटिया
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<poem>
भेंट उनको दिल की दौलत कर रहे हैं
इक अनोखी हम वसीयत कर रहे हैं

क्ंयू हिदायत पर हिदायत कर रहे हैं
सब हमीं को ही नसीहत कर रहे हैं

हर बुलन्दी उनका रस्ता देखती है
जो भी अपनी माँ की खि़दमत कर रहे हैं

आंच भी आने न पाये गुलस्तिां पर
फूल कलियां सब इबादत कर रहे हैं

हो भी सकता है मिलें कल मुस्कुरा कर
वो जो हमसे आज नफ़रत कर रहे हैं

ख़ौफ़ क्यूं मुझ को किसी से हो कि मेरी
मेरे कान्हा जब हिफ़ाज़त़ कर रहे हैं

साफ़ कहते भी नहीं वो दिल की बातें
बातों बातों में शिकायत कर रहे हैं

आग नफ़रत की लगी है इस चमन में
दोस्त, दुश्मन सब बग़ावत कर रहे हैं

जो ख़ुदा की ज़ात से मिलता है हमको
हम उसी पर बस क़नाअत़ कर रहे हैं
</poem>
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