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{{KKRachna
|रचनाकार=अनु जसरोटिया
|अनुवादक=
|संग्रह=ख़ुशनुमा / अनु जसरोटिया
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<poem>
मां के दिल से जो निकलती है दुआ हो जाएं
किसी दरवेश के होटों की सदा हो जाएं

फिर भी दिल उन की महब्बत ही का दम भरता है
इक झलक अपनी दिखा के जो हवा हो जाएं

जिस क़दर चाहो उन्हें चाहो उन्हें याद करो
इतना मत पूजो वो बन्दे से ख़ुदा हो जाएं

हम समा जाऐं तेरी ख़ाक के हर ज़र्रे में
ऐ वतन तेरे लिए हम जो फ़ना हो जाएं

आप के दिल में फिदा होने की हसरत है अगर
इन बहारों पे दिलो-जां से फ़िदा हो जाएं

कुल्लू वैली है पहाड़ों की मुग़ल शहज़ादी
दिल यहां आके न क्यों नग़मा-सरा हो जाएं

चार सू फैलें मसाजिद की अज़ानों की तरह
किसी दींदार के माथे की ज़िया हो जाएं

दिल यही मांगता रहता है दुआएं हरदम
वो मेरे दर्द-महब्बत की दवा हो जाएं
</poem>
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