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|रचनाकार=अनु जसरोटिया
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|संग्रह=ख़ुशनुमा / अनु जसरोटिया
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<poem>
था बिजली की ज़द पर मेरा आशियाना
मुक़़द्दर था जलना जला आशियाना

मिला चैन दिल को तो आ कर इसी में
बड़ा पुर-संकू है मेरा आशियाना

कहां तक भला शाख़ों शाख़ों फिरेगा
किसी शाख़ पर तो बना आशियाना

अरे आधियो क्या तुम्हें कुछ ख़बर है
यहां कल तलक एक था आशियाना

मिलेगी हवा तुझ को ताज़ा-व-ताज़ा
नदी के किनारे बसा आशियाना

समा जाएगी वुसअते दो जहां भी
नहीं है अगरचे बड़ा आशियाना
</poem>
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