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{{KKRachna
|रचनाकार=अनु जसरोटिया
|अनुवादक=
|संग्रह=ख़ुशनुमा / अनु जसरोटिया
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<poem>
बीते लम्हों की कई यादें सुहानी दे गया
जाते जाते वो मुझे छल्ला निशानी दे गया

मेरे ख़ाबों , मेरे जज़्बों को जवानी दे गया
मुस्कुरा के बिजलियों की सी रवानी दे गया

उसका मुड़ के देखना क्या कम मसीहाई से था
एक मुरझाते हुए पौधे को पानी दे गया

काम कैसा कर गया वो एक टुकड़ा अब्र का
खेतियों को एक चादर धानी धानी दे गया

वक़्त से पहले ही पक कर हो गई तैयार फ़स्ल
मीडिया इन छोटे बच्चों को जवानी दे गया

कर गया तक़रीर बस्ती में जो नेता एक दिन
नफ़रतों के मौसमों की इक कहानी दे गया

उस के दिल में था हिफ़ाज़त का मेरी कितना ख़्याल
एक चाकू नस्ब थी जिस में कमानी दे गया

रोते रोते धुल गया काजल मेरी आंखों का जब
वो मुझे इक खूबसूरत सुरमा-दानी दे गया

दिल से देते हैं दुआएं रात- दिन उस को ‘अनु’
रंजो-ग़म की हम को दौलत एक दानी दे गया
</poem>
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