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|रचनाकार=अनु जसरोटिया
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|संग्रह=ख़ुशनुमा / अनु जसरोटिया
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<poem>
तमाम उम्र यही हम ने कारोबार किया
तुम्हारे ग़म को दिलो-जां से इख़्तियार किया

गुज़़रते दिन तो थे पहले ही बेक़रारी में
किसी की याद ने रातों को बेक़रार किया

बुरा किया कि भला ये खु़दा को है मालूम
तुम्हारी बात पे हम ने जो एतबार किया

ज़माना याद करेगा तुम्हारी क़ुर्बानी
वतन की राह में ख़ुद को अगर निसार किया

खिला जो फूल तो वहशी न तेरे रुक पाये
बहार आते ही दामन को तार-तार किया

फ़रेब खाने के मौसम ग़ु़ज़र गये कब के
बदलते वक़्त ने हम को भी होशियार किया

हुआ ज़माना तरसते हैं दीद को उन की
उधार दे के उन्हें हम ने शर्मसार किया
</poem>
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