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{{KKRachna
|रचनाकार=अनु जसरोटिया
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|संग्रह=ख़ुशनुमा / अनु जसरोटिया
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<poem>
साफ़ सुथरी छोटी छोटी बस्तियां
कितनी सुन्दर हैं पहाड़ी बस्तियां

ज़लज़लों1 से ढ़ह गए कितने मकां
बह गईं पानी में कितनी बस्तियां

देखती हैं एक मुद्धत से तिरी
राह ऐ बादे-बहारी बस्तियां

कौन ग़्ाुज़रा ख़ुश्बओं से तर-बतर
फूल की ख़ुश्बू सी महकी बस्तियां

क़र्ज़ की गहराइयों में डूब कर
ख़ून के आंसू बहाती बस्तियां

एक दिन में तो नहीं बस्ती कहीं
बस्ते बस्ते ही बसेंगी बस्तियां

मत उजाड़ो बस्तियां दिल की कभी
फिर नहीं बसने की दिल की बस्तियां
</poem>
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