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|रचनाकार=वसीम बरेलवी
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|संग्रह=मेरा क्या / वसीम बरेलवी
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<poem>
तुमसे मिलने को चेहरे बनाना पडे
क्या दिखाये जो दिल भी दिखाना पडे

ग़म के घर तक न जाने की कोशिश करो
जाने किस मोड पर मुस्कुराना पडे

आग ऐसी लगाने से क्या फ़ायदा
जिसके शोलों को ख़ुद ही बुझाना पडे

कल का वादा न लो, कौन जाने कि कल
किस को चाहू, किसे भूल जाना पडे

खो न देना कही ठोकरों का हिसाब
जाने कि स-िकस को रस्ता बताना पडे

ऐसे बाज़ार मे आये ही क्यों 'वसीम'
अपनी बोली जहां ख़ुद लगाना पडे

</poem>
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