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09:51, 30 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वसीम बरेलवी
|अनुवादक=
|संग्रह=मेरा क्या / वसीम बरेलवी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
तुमसे मिलने को चेहरे बनाना पडे
क्या दिखाये जो दिल भी दिखाना पडे
ग़म के घर तक न जाने की कोशिश करो
जाने किस मोड पर मुस्कुराना पडे
आग ऐसी लगाने से क्या फ़ायदा
जिसके शोलों को ख़ुद ही बुझाना पडे
कल का वादा न लो, कौन जाने कि कल
किस को चाहू, किसे भूल जाना पडे
खो न देना कही ठोकरों का हिसाब
जाने कि स-िकस को रस्ता बताना पडे
ऐसे बाज़ार मे आये ही क्यों 'वसीम'
अपनी बोली जहां ख़ुद लगाना पडे
</poem>