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09:58, 30 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वसीम बरेलवी
|अनुवादक=
|संग्रह=मेरा क्या / वसीम बरेलवी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
क़तरा हूं, अपनी हद से गुज़रता नही
मै समन्दर को बदनाम करता नही
तू अगर एक हद से गुज़रता नही
मैं भी अपनी हदे पार करता नही
अपनी कम-िहममती को दुआ दीिजये
पर किसी के कोई यूं कतरता नही
जाने क्या हो गयी इसकी मासूिमयत
अब ये बचचा धमाकों से डरता नही
बस, ज़मी से जुडी हैं सभी रौनके
आसमां से कोई घर उतरता नही
</poem>