Changes

'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वसीम बरेलवी |अनुवादक= |संग्रह=मेर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वसीम बरेलवी
|अनुवादक=
|संग्रह=मेरा क्या / वसीम बरेलवी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
मेरे ग़म को जो अपना बताते रहे
वक़्त पडने पे हाथों से जाते रहे

बािरशे आयी और फ़ैसला कर गयी
लोग टूटी छते आज़माते रहे

आंखे मंज़र हुई, कान नग़्मा हुए
घर के अन्दाज़ ही घर से जाते रहे

शाम आयी, तो बिछड़ा हुए हमसफ़र
आंसुओं-से इन आंखों मे आते रहे

नऩ्हे बचचों ने छू भी लिया चांद को
बूढे बाबा कहानी सुनाते रहे

दूर तक हाथ मे कोई पत्थर न था
फिर भी, हम जाने क्यों सर बचाते रहे

शाइरी जह्र थी, क्या करे ऐ 'वसीम'
लोग पीते रहे, हम पिलाते रहे
</poem>
Mover, Reupload, Uploader
3,998
edits