1,270 bytes added,
05:08, 2 अक्टूबर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वसीम बरेलवी
|अनुवादक=
|संग्रह=मेरा क्या / वसीम बरेलवी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
इक कहानी सी दिल पर लिखी रह गई
वह नज़र जो मुझे देखती रह गई
रंग सारे ही कोई चुरा ले गया
मेरी तस्वीर अधूरी पड़ी रह गई
लोग बाज़ार में आ के बिक भी गये
मेरी कीमत लगी की लगी रह गई
वह तो कमरे से उठकर चला भी गया
बात करती हुई ख़ामुशी रह गई
दो उजाले अंधेरों में खो भी गये
हाथ मलती हुई चांदनी रह गई
बस वही अब हवा की निगाहों में हैं
जिन चराग़ों में कुछ रौशनी रह गई
वह भी चाहे, तो पूरी न हो ऐ 'वसीम'
ज़िन्दगी में कुछ ऐसी कमी रह गई।
</poem>