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|रचनाकार=वसीम बरेलवी
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|संग्रह=मेरा क्या / वसीम बरेलवी
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<poem>
आज का यह ज़माना उसी का लगे
वह जो प्यासा न हो और प्यासा लगे

उसको चाहा ही है मैंने कुछ इस तरह
वह कहीं भी रहे, सिर्फ मेरा लगे

मैं खरीदूं तुझे तू खरीदे मुझे
गांव में एक ऐसा भी मेला लगे

रात भर झील की गोद में सो के भी
सुब्ह को चांद क्यों प्यासा प्यासा लगे

पास जाओ, तो बस, रेत ही रेत है
दूर से देखने में जो दरिया लगे

एक दिल था, उसे जाने क्या हो गया
ऐ 'वसीम' इन दिनों कुछ न अच्छा लगे।

</poem>
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