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|रचनाकार=जंगवीर स‍िंंह 'राकेश'
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<poem>
आँसू, ग़म, तन्हाई बाँटो
दर्दों की पुरवाई बाँटो

हक़ सियासत ने दिया है
दु:ख की तुम शहनाई बाँटो

पहले क़त्ले-आम कर दो
उसकी फिर भरपाई बाँटो

अब मचाओ खूब आतंक
कब्रों जैसी, खाई बाँटो

झपती आँखों मे हैं सपने
उनमें कुछ बीनाई बाँटो

मुफ़्लिसों को है ज़रूरत
हक़ की पाई पाई बाँटो

अब सन्नाटा ख़ुद में गुम है
इतना तुम परछाई बाँटो

एक मंजर पसरा बाहर
आप अंदर खाई बाँटो

इश्क़ में तब ख़ुश बहुत थे
इसकी अब अगुआइ बाँटो‍
‍‍
ग़ज़लों में कितना सकूं है
ग़ज़लों से तन्हाई बाँटो
</poem>
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