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|रचनाकार=जंगवीर स‍िंंह 'राकेश'
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<poem>
ज़ियादा कुछ न मिल पाया तो खुद को ही,
मैं तिल-तिल बांट आया मुफ़लिसों में कल

जहाँ पर दर्द जिन्दा था, ज़मानों से,,,,,!
मुहब्बत बांट आया, उन घरों में कल

मैं उनके ही, जो वहशतगर्दी थे, लोगों
खुशी के बीज बो आया, दिलों में कल

घनी इस भीड़ में ग़ज़लें सुना के ही. . . !
लगा मैं आग आया महफ़िलों मे कल

खफ़ा गर 'वीर' से,सब हों तो होने दो. .!
बयानी सच ही दूँगा, फैसलों में कल
</poem>
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