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<poem>
और हम से, सहा नही जाता
हाल-ए-दिल अब कहा नही जाता

देख पागल तुम्हें न हो जाऊँ
सामने भी रहा नही जाता

खिड़की से ता'कती थी इक लड़की,
भूला वो इक समा नही जाता !!

कब से भटका हूँ रहगुज़र में ही
तुम तलक रास्ता नही जाता!

संगमरमर से चमकिले लोगों
पत्थरों -सा बना नही जाता !

जानता आक़बत<ref>पर‍िणाम</ref> हूँ ज़ख्मों की,
हाँ! ये नासूर सा नही जाता !!

पल दो पल का हूँ मैं फ़क़त 'शाइर'
मुझसे ये फ़लसफ़ा नही जाता !
</poem>
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