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04:49, 5 अक्टूबर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= विनय सौरभ
|संग्रह=
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avita}}
<poem>
तुम्हारे बारे में सोचते हुए
एक दिन पाया कि
ऐसा करते हुए कई साल बीत गए हैं
याद करना कुछ खास करने
जैसा नहीं रह गया था
यह कोई सहायक क्रिया भी नहीं थी
तुम्हें बताना चाहता हूँ
कि वह शहर पूरी तरह बदल गया था जो हमारी साँसों में बसता था
सारी चीजें हमेशा की
तरह बदल रही थीं
हमारे साथ बैठने की वह जगह भी
जो हम स्मृतियों में छोड़ आए !
मैंने दरबान से पूछा कि यहाँ एक गुलमोहर भी हुआ करता था
जवाब में उसने कहा कि
आपको मिलना किससे है ?
साइकिलें नहीं थीं !
वे मुझे वह बेहद शिद्दत से याद आईं
जो हॉस्टल की बाहरी दीवारों पर टिकी रहती थीं
बहुत तेज भागता प्रेम था यहाँ
और थोड़ा आक्रामक दिखता सा असहजता बीते दिनों का किस्सा थीं
क्या इत्मीनान से भरे थे हमारे दिन ?
क्या हमारी यादों में उन दिनों की आशंकाएं दर्ज हैं !
और क्या दुख की इबारतों के किस्से भी मिलेंगे वहां ?
कहाँ जाएँ कि शक्लें
अब बदल चुकी हैं
और अच्छा हुआ कि
हम अपनी पुरानी डायरियाँ
भी कहीं रखकर भूल गए हैं !!
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