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बख़्तियारपुर / विनय सौरभ

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सच तो यह भी है मित्रों की पिता की ज़िंदगी के बहुत से ज़रूरी हिस्सों के बारे में हम अनजान थे
अभी महानगर की ओर भागती इस ज़िंदगी की जरूरत में पिता की स्मृतियाँ स्मृतियाँ चालीस वर्ष पुराने चौखटे लाँघ रही थी !
पिता दिल्ली की इस यात्रा में कहीं नहीं थे !
हम नहीं चाहते थे कि उनकी नींद पर पानी पड़े !
बख़्तियारपुर गुजर गया था और इसे लेकर हम एक अनजाने अपराधबोध और संकोच से गिर घिर गए थे
लेकिन इस समय हम पिता की नींद की सुरक्षा के बारे में सोच रहे थे और इसके खराब हो जाने के प्रति चिंतित थे
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