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शर्मनाक समय / मनमोहन

104 bytes added, 15:13, 5 अक्टूबर 2018
{{KKRachna
|रचनाकार=मनमोहन
|अनुवादक=|संग्रह=ज़िल्लत की रोटी / मनमोहन
}}
{{KKCatKavita}}<poem>कैसा शर्मनाक समय है  जीवित मित्र मिलता है  
तो उससे ज़्यादा उसकी स्मृति
उपस्थित रहती है
उपस्थित रहती है  और उस स्मृति के प्रति  बची-खुची कृतज्ञता  या कभी कोई मिलता है  अपने साथ ख़ुद से लम्बी
या कभी कोई मिलता हैअपने साथ ख़ुद से लम्बी अपनी आगामी छाया लिए !</poem>
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