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05:35, 17 अक्टूबर 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सवाईसिंह शेखावत
|संग्रह=
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avita}}
<poem>
एक जोड़ी जूते
कोने की दीवार से सटा कर रखे हुए
अगल-बगल गरदन झुकाए बैठी ख़ामोशी
खिड़की से झाँकता बुझा नीला आकाश
धूप से भरा किन्तु कुछ वीरान-सा दिन
घर के अहाते में पसरी परित्यक्त उपस्थिति
गलियारे तक चली आई मुखर अनुपस्थिति
काश, दृश्य में एक आदमी भी होता
इस होेने को दूर तक ले जाता हुआ!
</poem>