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<poem>
दीप नहीं, स्नेह सदा जलता है ।

मिट्टी के शीश साज
सौरभ-आलोक-छत्र
गूंथ हृदय-हार मध्य
किरन-कुसुम-ज्योति-पत्र
वृक्ष नहीं, बीज अरे फलता है ।
दीप नहीं, स्नेह सदा जलता है ।

जन्म-मरण दो डग धर
नाप सकल भुवन-लोक
पथ का पाथेय लिये
नयन-द्वय हर्ष-शोक
रूप नहीं, रे अरूप चलता है
दीप नहीं, स्नेह सदा जलता है ।

रेखा की वन्दिनि, गुण-
वर्णों की भ्रमासक्ति
छवि की छाया-तटनी
दृग की जड़ धूल-भक्ति,
आकृति तो कृति की असफलता है।
दीप नहीं, स्नेह सदा जलता है।
</poem>
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