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22:27, 23 अक्टूबर 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सईद राही
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<poem>
ख़ुदा के वास्ते अपना हिसाब रहने दो
सुबह तलक़ मेरे आगे शराब रहने दो
ये क्या के ख़ुद हुए जा रहे हो पागल से
ज़रा सी देर तो रुख़ पे नक़ाब रहने दो
ये आईना है इसे तोड़ने से क्या हासिल
ख़ुद अपने वास्ते अपना जवाब रहने दो
हमें भी अपने ज़रा और पास आने दो
हमें भी और ज़रा सा ख़राब रहने दो
</poem>