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22:28, 23 अक्टूबर 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सईद राही
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<poem>
उसकी बातें बहार की बातें
वादी-ए-लालाज़ार की बातें
गुल-ओ-शबनम का ज़िक्र कर ना अभी
मुझको करनी है यार की बातें
मखमली फ़र्श पे हो जिनकें कदम
क्या वो समझेंगे ख़ार की बातें
शेख़ जी मैकदा है काबा नहीं
याँ तो होंगी ख़ुमार की बातें
इश्क़ का कारवाँ चला भी नहीं
और अभी से ग़ुबार की बातें
ये क़फ़स और तेरा ख़याल-ए-हसीं
उस पे हरसू बहार की बातें
याद है तुझसे गुफ़्तगू करना
कभी इश्क़, कभी रार की बातें
ऐ नसीम-ए-सहर मुझे भी सुना,
गेसू-ए-मुश्क़बार की बातें
जब सुकूँ है कफ़स में ऐ 'राही'
क्यूँ करें हम फ़रार की बातें
</poem>