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<poem>
कोई पास आया सवेरे सवेरे
मुझे आज़माया सवेरे सवेरे

मेरी दास्ताँ को ज़रा सा बदल कर
मुझे ही सुनाया सवेरे सवेरे

जो कहता था कल शब संभलना संभलना
वही लड़खड़ाया सवेरे सवेरे

जली थी शमा रातभर जिसकी ख़ातिर
उसी को जलाया सवेरे सवेरे

कटी रात सारी मेरी मैकदे में
ख़ुदा याद आया सवेरे सवेरे

</poem>
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