Changes

<poem>
तुम्हारे हुस्न के चर्चे बहोत हैं
हमारे हिज्र <ref>जुदाई, अकेलापन</ref> के किस्से बहोत हैं
अमांं अमां जाओ, तुम्हें दौलत मुबारक!
हमारे ख़्वाब भी महँगे बहोत हैं
मेरे भी पांव में रस्ते बहोत हैं
र‍िहा कर दो न ये , सब पंछी क़फ़स <ref>पिंजरा</ref> से
सुना है आप ताे अच्‍छे बहोत हैं
</poem>
761
edits