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क्वाँर की बयार / अज्ञेय

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::::क्वाँर की बयार चली,
शशि गगन पार हँसे न हँसे--
::::शेफ़ाली शेफाली आँसू ढार चली !
नभ में रवहीन दीन--
::::बगुलों की डार चली;
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