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एलबम / विजयशंकर चतुर्वेदी

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|रचनाकार=विजयशंकर चतुर्वेदी |अनुवादक=|संग्रह=पृथ्वी के लिए तो रूको / विजयशंकर चतुर्वेदी}} {{KKCatKavita}}<poem>
यह अचकचाई हुई तस्वीर है मेरे माता-पिता की
किस्सा क़िस्सा है कि इसे देख दादा बिगड़े थे बहुत
यह रही मेरी झुर्रीदार नानी मुझे गोद में लिए
खेल रहा हूँ मैं नानी के चेहरे की परतों से
फौजी फ़ौजी वर्दी में यह नाना हैं मेरे
इनके पास खड़ी यह बच्ची माँ है मेरी
फिर मैं हूँ माँ की उँगली थामे स्कूल जाता
एक धुँधली तस्वीर है बचपन के साथी की
साँप काटने से जब मरा बहुत छोटा था
खिड़की पर यह दुबली लड़की बहन है मेरी
दिखती है फोटो फ़ोटो में जाने किसकी राह देखती
यह मैं हूँ और पत्नी उदास घूँघट में
ठीक बाद में यह है उसका बढ़ा हुआ पेट
फिर तीन-चार तस्वीरें हैं हमारे बाल-बच्चों की। की ।
कुछ तस्वीरें ऐसी भी हैं कुछ तस्वीरें
जिन्हें देखने की दिलचस्पी अब किसी में नहीं बची
ये सब साथ-साथ पढ़ने-लिखने वाले लड़के थे।थे ।
आखिर आख़िर में तस्वीर लगी है एक बहुत बूढ़े बाबा की
कान के पीछे हाथ लगाए आहट लेने की मुद्रा में
यह बाबा नागार्जुन है।है ।</poem>
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