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16:25, 18 दिसम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ज्ञान प्रकाश पाण्डेय
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|संग्रह=
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<poem>
रंग बदले है वक्त आने पर,
क्या भरोसा करूँ ज़माने पर।
कोई मरता है भूख से क्योंकर,
नाम लिक्खा है दाने-दाने पर।
अब ये चुप्पी ज़नाब तोड़ो भी,
आ गई है नदी मुहाने पर।
गर है हिम्मत तो जाके पूछो अब,
किसने पत्थर रखा दहाने पर।
प्रश्न मिट्टी के क्या उठे फिर तो,
चढ़ गई ज़र्दी आसमानों पर।
आईने भी दरक गये साहिब,
रू-ब-रू आईने के आने पर।
</poem>