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|रचनाकार=ज्ञान प्रकाश पाण्डेय
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<poem>
चाँदनी ये आज-कल गहरी परेशानी में है,
कुछ दिनो से रात क्यों सूरज की निगरानी में है?

रोज इक दरिया समंदर में उतर कर खो रहा,
हम समझते हैं कि सब उसकी निगहबानी में है।

दम - ब- दम बागी हवयें शोर बरपा कर रहीं,
एक ख़ामोशी मुसलसल झील के पानी में है।

फिर निचोड़ी जा रही है जुगनुओं की रोशनी,
मुझको हैरानी कि याँ' कोई न हैरानी में है।
</poem>
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