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विषुवत रेखा / निर्मला सिंह

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<poem>सूर्य पैंतालीस डिग्री का
कोण बनाता है
मुझ पर
क्योंकि मैं कभी
कर्क रेखा बन जाती हूँ
तो कभी मकर रेखा,
नहीं बन पाई अब तक
एक बार भी विषुवत् रेखा
जो बाँट दे
ज़िन्दगी को दो बराबर भागों में,
सुख-दुख की
जहाँ उगते हों सुख के
सदाबहार वन
पड़ती हो खुशियों की
चमकती धूप
वृक्षों की फुन्गियों पर।
</poem>
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