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|रचनाकार=जयशंकर प्रसाद
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शरद का सुंदर नीलाकाश
निशा निखरी, था निर्मल हास
बह रही छाया पथ में स्वच्छ
सुधा सरिता लेती उच्छ्वास
पुलक कर लगी देखने धरा
प्रकृति भी सकी न आँखें मूंदमूँद
सु शीतलकारी शशि आया
सुधा की मनो बड़ी सी बूँद !</poem>