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दो बूँदें / जयशंकर प्रसाद

21 bytes added, 10:08, 19 दिसम्बर 2018
|रचनाकार=जयशंकर प्रसाद
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शरद का सुंदर नीलाकाश
 
निशा निखरी, था निर्मल हास
 
बह रही छाया पथ में स्वच्छ
 
सुधा सरिता लेती उच्छ्वास
 
पुलक कर लगी देखने धरा
 प्रकृति भी सकी न आँखें मूंदमूँद
सु शीतलकारी शशि आया
 सुधा की मनो बड़ी सी बूँद !</poem>
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