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22:24, 20 दिसम्बर 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सुभद्राकुमारी चौहान
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<poem>
अरे! ढाल दे, पी लेने दे! दिल भरकर प्यारे साक़ी।
साध न रह जाये कुछ इस छोटे से जीवन की बाक़ी॥
ऐसी गहरी पिला कि जिससे रंग नया ही छा जावे।
अपना और पराया भूलँ; तू ही एक नजऱ आवे॥
ढाल-ढालकर पिला कि जिससे मतवाला होवे संसार।
साको! इसी नशे में कर लेंगे भारत-माँ का उद्धार॥
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