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<poem>
जलने दे! जलदे दे! निर्दय मत उसका यह आग!
जलनेवालों की पीड़ा से क्यों इतना अनुराग?
सोचा है, पतंग क्यों करते हैं दीपक से प्यार?
उसी अन्त में सुख है, जिसको कहते अत्याचार!
ओ ममत्व! तू भी हाँ, जल जा इस ज्वाला के संग।
सोने की लपटों से कर ले आज सुनहला रंग॥

</poem>
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