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23:40, 28 दिसम्बर 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=पुरुषार्थवती देवी
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<poem>
उठो, उठो साहस से वीरो, मत मन में भय खाओ।
वीर वेष से सज्जित होकर, रण-प्रांगण में जाओ॥
प्रलयंकर संगीत समर की स्वर-लहरी में गाओ।
करधृत शुचि करवाल, अलंकृत होकर, फाग मचाओ॥
शौर्य-तेज से अपने जग में, विजय-ध्वजा फहराओ।
दुर्बल-दिल में साहस भर दो ताण्डव नृत्य नचाओ॥
सुप्त विश्व को जागृत कर शुचि वीर सँदेश सुनाओ।
</poem>