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16:01, 15 जनवरी 2019 {{KKGlobal}}
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<poem>
हर अवसर से लाभ उठाना ,
मैंने भी अब सीख लिया है
आदर्शों को बिकते देखा
खुले आम जब बाजारों में
सम्बन्धों के सिक्के चलते
देखा जब जग व्यापारों में
शुद्ध स्वार्थ के विश्व बैंक में
लोगों की लख गहमागहमी
सम्बन्धों के चेक भुनाना
मैंने भी अब सीख लिया है
नेताओं को फिरते लख कर,
थोक वोट के गलियारों में
नाच दिखाते जाति, धर्म, भाषा
के संकरे चौबारों में
सच कहता हूँ न्याय-निति तज
सत्ता की खातिर जनता को
बहकाना या तो भड़काना
मैंने भी अब सीख लिया है
मान-पत्र जब पाते देखा
देश धर्म के गद्दारों को
जनता की किस्मत का निर्णय
करते देखा मक्कारों को
लोकतंत्र की इस मिटटी में
अधिकारों की फसल उगी तो
अपनी एक पहचान बनाना
मैंने भी अब सीख लिया है
</poem>