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|रचनाकार=रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध'
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<poem>
सावधान! जो जन्मभूमि पर टेढ़ी नज़र उठाएगा।
शपथ राम की धराधाम पर कहीं न रहने पायेगा ॥

ऋषिमुनियों की तपोभूमि यह, जन्मभूमि भगवानों की,
कर्मभूमि यह कल्याणों की, धर्मभूमि श्रीमानों की,
आदिभूमि यह आदर्शों की, विमल भूमि वरदानों की,
दिव्यभूमि यह इंसानों की, भव्यभूमि बलिदानों की,

यहाँ धधकता सूर्य शौर्य का बोलो कौन बुझायेगा।
शपथ राम की धराधाम पर कहीं न रहने पायेगा ॥

यहाँ हुए भूपाल भगीरथ गंगाजय करनेवाले,
यहाँ हुए श्री हरिश्चन्द्र सच्चाई पर मरनेवाले,
यहाँ हुए श्रीरामचन्द्र दुःख दुनिया का हरनेवाले,
यहाँ हुए श्रीऋषभदेव आलोक नया भरनेवाले,

यहाँ विराजे बुद्ध और गुरुनानक कौन भुलायेगा।
शपथ राम की धराधाम पर कहीं न रहने पायेगा ॥

यहाँ सनातन संस्कृति जन्मी, और सभ्यता कनकजड़ी,
यहाँ मनुजतामर्यादा की विश्वविजयिनी कीर्ति खड़ी,
यहाँ न झुकनेवाले पौरुष की है ध्वजा अजेय गड़ी,
यहाँ क्रांति के संग विलसती विश्वशांति भी घड़ीघड़ी,

यह है भारत यहाँ तिरंगा ध्वज केवल लहरायेगा।
शपथ राम की धराधाम पर कहीं न रहने पायेगा ॥

भेज रहा हूँ सीमा से शोणित से लिखी हुई पाती,
कभी न हम लुटने देंगे वीर पूर्वजों की थाती,
चाहे चले आँधियाँ अगणित, शोर मचाये उत्पाती,
किन्तु नहीं है बुझनेवाली देशभक्ति की यह बाती,

अपने लोहू से हर भारतवासी इसे जलायेगा।
शपथ राम की धराधाम पर कहीं न रहने पायेगा ॥

</poem>
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