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ये गौरी की कृपा जैसी, महाशिव की विभूती है ।
कभी मत इस तरह बोलो,चहकती सी रहो हरदम।
मिटाती तुम रहो अपनी हँसी से विश्व भर का गम ।
जिधर तुम आँख को फेरो उधर हो फूल की वर्षा;
निगाहें ही जिलाती हैं, हमें सब कुछ लिखाती हैं ।
तुम्हारी माँग में लाली सजनि!ज्यों प्रात की ऊषा ।तुम्हारी मुस्कुराहट जिन्दगी की प्राण - मंजूषा ।
तुम्हारी देह पर हर वस्तु बन जाती स्वयं गहना,
हृदय को मोहती सचमुच तुम्हारे वेश की भूषा ।
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