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|संग्रह=नहा कर नही लौटा है बुद्ध / लाल्टू
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<poem>
ठण्डी हवा झूमते पत्ते
सदियों पुरानी मीठी महक
उसकी नज़रें झुकीं
वह सोचती अपने मर्द के बारे में।

बैठी कमरे में खिड़की के पास
हाथ बँधे प्रार्थना कर रही
थकी गर्दन झुकी
वह सोचती अपने मर्द के बारे में।

शहर के पक्के मकान में
गाँव की कमज़ोर दीवार के पास
दंगों के बाद की एक दोपहर
वह सोचती अपने मर्द के बारे में।

</poem>
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