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अस्वीकरण
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कि अपनी हज़ार सूरतें निहार सकूँ / अरुणा राय
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,
17:41, 30 जुलाई 2008
कि वह आईना था <br>
तो उसे बिखरना ही था <br>
अब भी मैं उसकी आँखें
हूं
हूँ
<br>
और हर ज़र्रे से <br>
वे आँखें <br>
अनिल जनविजय
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