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|संग्रह=नहा कर नही लौटा है बुद्ध / लाल्टू
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<poem>

देश के कोने-कोने में भटक रहे
मुट्ठी भर स्वर्ग पाने को बच्चे
हे देशभक्त! कहाँ है वह स्वर्ग जिससे महान् है
जननी जन्मभूमि
क्या देश में स्वर्ग की
परियाँ उतरती हैं रात को
बच्चों को दे जातीं सपनों के त्योहार

क्या देश में सैनिकों की संख्या
देश में भिखमंगों की संख्या से अधिक है
तमगों से लदे सेना अधिकारी क्यों हैं तस्वीरों में
और सड़क पर भीख माँगते बच्चे क्यों नहीं
हर दिन जो लोग ग़ायब हो रहे हमारे जीवन से
अख़बार में आकर भी क्यों हैं वे नदारद

डर लगता है घर से बाहर निकलने में
स्वाधीनता दिवस है
माँएँ सावधान करती हैं बच्चों को
आवारा नहीं गलियों के पहचाने कुत्ते घूम रहे हैं
ख़ूँखार आवाजे़ं निकालते
कहीं से बारूद की गन्ध मिली है

कहाँ है वह स्वर्ग जिससे महान् है
जननी जन्मभूमि!

</poem>
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