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05:45, 22 जनवरी 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|अनुवादक=
|संग्रह=नहा कर नही लौटा है बुद्ध / लाल्टू
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<poem>
वहाँ उसने मकानों की छतों पर छलाँग लगाकर जंगली फूलों तक
पहुँचना सिखाया।
वहाँ सोचते ही मैं जंगल फूल बन जाता हूँ
जंगली फूल को गमलों में नहीं बाँध सकते
दिल्ली में भी वह बेशर्म खुला खिलता है
दिल्ली में जंगली फूलों की सभा हो तो मैं डलहौज़ी क्यों जाऊँ
</poem>