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{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
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|संग्रह=नहा कर नही लौटा है बुद्ध / लाल्टू
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<poem>
चार खूँटियों पर धातु का चौकोर बड़ा गमला।

गमला मिट्टी का। गमला प्लास्टिक का।
बहुत बड़ा नहीं, ज़्यादा से ज़्यादा छोटी बालटी।

गमला कहने पर चौकोर आकार की कल्पना नहीं।
चौकोर बड़ा गमला गमला इसलिए कि इसमें पौधे।
मिट्टी। मिट्टी में पौधे।
सदाबहार पौधे।
गमले की चौकोर दीवारें धातु की सपाट छडे़ं।
कोनों में सीधा छड़। ऐंगल।

पौधों के पत्तों के बीच
बुजुर्ग अधगंजा आदमी जिसके सिर दाढ़ी के बाल सभी काले।
बालों में रंग डालने से दृश्य में अदृश्य उसकी बीवी, प्रेमिकाएँ, सभी हैं
दृश्य।
गमला और पौधे के बीच से दिखती है सृष्टि, एक सृष्टि।
दूसरी और तीसरी दृश्य सृष्टि गमले की दिशा से विपरीत ओर हैं।
कई सृष्टियाँ गमले की दिशा में हैं, अदृश्य हैं।
किस सृष्टि में है गमला
</poem>
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