भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatKavita}}
<poem>
यह जो पसीने की गन्धहवा कब तक जंग में आई तेरीलगी-सी पड़ी थीऐ देश! बता किसकी हैयह जो फरवरी ऊँची गेहूँ की फसलतेरे खेतों में चमकती दिखीइसके बीजों का इतिहास क्या हैवह जिस ज़मीं चारों ओर देखती, डेस्क पर है वह किस की जान हैइस ज़मीं , बिस्तर पर किसके हैं बहते आँसूजो इस की नदियाँ हैंयह जो पसीने की गन्धतेरी हवा पड़ी रहती जेब में आईऐ देश! बता किसकी है, फाइलों के बीच
हज़ारों बरस दौड़ते जानवरों ने इस माटी से खेलाबता कि उनके सपने क्या थेकिस मौसम में ढूँढ़ते थे वे किन पागलों कई बार चलने कोहुईहमने देखा है पहाड़ों को जो तेरे हैंहमने देखा है भूखों के जुलूसों को पहाड़ बनतेबता कि जब जब लोग बौखला उठेमार-काट बोली में नाचे जब उनके हाथ पैरउनका खू़न इस माटी इस पानी में बह कर कितनी दूर गया हैकितनी माँएँ हैं बिलखती तेरी साँसों मेंकिन बादलों में जमी है उनके बच्चों की महकझिझकती रूक गई।
बता तेरी किस माटी किस आस्माँ किस हवा किस पानी कोअन्ततः क़लमकरूँ सलाम!चल पड़ी हैपीले रंगों की ओरजिनकी वजह से वह रुकी पड़ी थी।
</poem>
761
edits