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|संग्रह=नहा कर नही लौटा है बुद्ध / लाल्टू
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<poem>
एक दिन धरती फेंक देगी हमें शून्य में
नहीं सहा जाता इतना बोझ
आसमान नहीं स्वीकारेगा हमारी यातनाएँ

कौन ब्रह्म हमंे सँभालने अपनी हथेली पसारेगा

धरती के इस ओर से उस ओर
दुर्वासा के क़दमों की थाप
काँप रहा गगन

एक व्यक्ति ढूँढ़ने निकला है
आदि आदिम को
धरती और आसमान विस्मित हैं
पूछ रहे एक दूसरे से कि किसकी ग़लती है
कि आदम की सन्तानें हैं इतनी बीमार

एक व्यक्ति योजनाएँ बना रहा है
कि वह हर बदले का बदला लेगा
बदलों की सूची बनाते हुआ वह रुक गया है
आदम तक पहुँच कर

क्यों फेंके थे पत्थर आदम ने
जब और कोई न था धरती पर उसके सिवा।

</poem>
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