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|रचनाकार=लाल्टू
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|संग्रह=नहा कर नही लौटा है बुद्ध / लाल्टू
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<poem>
आज खिड़की से झाँक रहे गुलमोहर से जाना
कि वह कविता में नहीं वाक़ई तुझे मिस कर रहा है
मेरी आँखों और गुलमोहर के बीच लम्बी गुफ़्तगू चली कि
तू होती तो क्या पढ़ा क्या लिखा जाता
कैसी चर्चाएँ होतीं और कैसे हमबदन होते हम

तब मैंने छुए अपने होंठ और पाया तेरे होंठों को वहाँ
मेरा सीना फटा है तेरे सीने से
आज खिड़की से झाँक रहे गुलमोहर से जाना
कि तू जहाँ भी है रे
मैं हूँ तेरे पास।

</poem>
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