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|संग्रह=नहा कर नही लौटा है बुद्ध / लाल्टू
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<poem>

विक्षिप्त लोग
कभी हाथ पैर उछालते, कभी कोई छड़ी हाथ में लिए सड़कों, गलियों या मैदानों में
घूमते मिलते हैं।
यूँ ही एक आदमी के कहने पर लाखों लोग खड़े नहीं हो जाते। महाविश्व मंे कौन
किसे संचालित करता है, इसका हिसाब प्रकृति नामक एक बड़ा कम्प्यूटर रखता
है। कभी डिस्क वापस लौटकर किसी पुराने बिन्दु से चल पड़ती है। बना बनाया
इतिहास ग़ायब हो जाता है जैसे एक गोलक सिमट कर बिन्दु बनता है।

नए इतिहास में नए प्रेम, नए परिवार, नए धर्म, सब कुछ नया।

गोलक कभी बिन्दु नहीं बन सकता, इसलिए ग़ायब इतिहास सचमुच ग़ायब नहीं
होता। ब्रह्माण्ड में बिखरे हुए पुराने इतिहास को ढूँढ़ते हुए विक्षिप्त लोग तलाश में
रहते हैं कि खोई हुई धुन की कड़ी पकड़ लें। कभी हाथ पैर उछालते, कभी कोई
छड़ी हाथ में लिए...।


</poem>
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