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07:01, 22 जनवरी 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|अनुवादक=
|संग्रह=नहा कर नही लौटा है बुद्ध / लाल्टू
}}
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<poem>
मुझे दिखते बादल मटमैले
मैं कहता हूँ कि अब तूफ़ान नहीं आए
मैं देखता हूँ कि हवा थमी ही नहीं
मैं विरक्त हूँ
मेरे पास दो रास्ते हैं
एक कोना है जहाँ मैं सिमट सकता हूँ
दूसरा यह कि मैं आँखों का ऑपरेशन करवाऊँ
कि वे देख सकूँ जो चारों ओर है
मैं उत्तर-आधुनिक
दृश्य में द्रष्टा देखता हूँ
अपनी ही उक्तियाँ अपने खि़लाफ़ इस्तेमाल करता हूँ
कदाचित् शान्तचित्त सरल भाषा में ख़ुद को समझाता हूँ
कि नहीं देखना चाहिए जो दिखता है
मैं कोने में सिमटने से पहले
एक बार उछलना चाहता हूँ
मेरे एहसास
करते हैं शिथिल मुझे
टाँगें बेजान, मुट्ठियाँ बन्द
मेरा शरीर उतना ही होता है बेचैन
बदली में दिखने लगती है मुझे धूप
दीवारें होने लगती हैं पारदर्शी
प्रकाश के साथ चलता ताप का एहसास
ज़मीं से आस्माँ तक धधकती है फिजाँ
मैं धरती को चूमता हूँ
उन्मत्त नहीं, सधे ताल पर नाचता हूँ।
</poem>