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|संग्रह=प्यार का पहला ख़त / हस्तीमल 'हस्ती'
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<poem>
कांच के टुकड़ों को महताब बताने वाले
हमको आते नहीं आदाब ज़माने वाले

ग़ैर के दर्द से भी लोग तड़प जाते थे
वो ज़माना ही रहा ना वो ज़माने वाले

दर्द की कोई दवा ले के स़फर पे निकलो
जाने मिल जाएँ कहाँ ज़ख़्म लगाने वाले

उनको पहचाने भी तो कैसे कोई पहचाने
अम्न के चोले में हैं आग लगाने वाले

वो करिश्माई जगह है ये मुहब्बत की बिसात
हार जाते हैं जहाँ सबको हराने वाले
</poem>