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|रचनाकार=हस्तीमल 'हस्ती'
|संग्रह=प्यार का पहला ख़त / हस्तीमल 'हस्ती'
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<poem>
मोहरे, शह और मात अलग थी
बाज़ी मेरे हाथ अलग थी

दौलत खूब कमाई लेकिन
उस दर की सौग़ात अलग थी

सब थे उसके आगे-पीछे
लेकिन मेरी ज़ात अलग थी

मैंने जिसके सपने देखे
यारो वो बरसात अलग थी

वो भी अलग था कुछ अपने में
अपनी भी कुछ बात अलग थी

</poem>